चलो अपने देश
चलो मित्र! उस देश चलो
जहाँ प्रेम की गंगा बहती है।
कण कण में है,महादेव का वास
जो देवात्माओं की धरती है।
रक्षा प्रहरी गिरिराज हिमालय
चरण-वंदना करता सागर।
रेत स्वर्ण आभूषण सम शोभित।
हर्षित चित्त रहता जहाँ अम्बर।
प्रकृति की असीम अनुकंपा,
जहाँ,सौन्दर्यता की छटा निराली है।
सुन्दर-रमणीय,मनमोहक वादियाँ है जहां,
खुले मैदानों की छवि सुहानी है।
जहाँ चिड़ियों का कलरव गूँजता है,
सरिता,मधुर संगीत सुनाती है।
हवाओं में पुष्प सुगन्ध है बिखरी,
हरीतिमा चहुँओर...
जहाँ प्रेम की गंगा बहती है।
कण कण में है,महादेव का वास
जो देवात्माओं की धरती है।
रक्षा प्रहरी गिरिराज हिमालय
चरण-वंदना करता सागर।
रेत स्वर्ण आभूषण सम शोभित।
हर्षित चित्त रहता जहाँ अम्बर।
प्रकृति की असीम अनुकंपा,
जहाँ,सौन्दर्यता की छटा निराली है।
सुन्दर-रमणीय,मनमोहक वादियाँ है जहां,
खुले मैदानों की छवि सुहानी है।
जहाँ चिड़ियों का कलरव गूँजता है,
सरिता,मधुर संगीत सुनाती है।
हवाओं में पुष्प सुगन्ध है बिखरी,
हरीतिमा चहुँओर...