...

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ग़ज़ल-253/2022
सबको जब सर्दी लगती है
साहब को गर्मी लगती है

कानों में अब मिसरी डालो
सच से गर मिर्ची लगती है

ज़हर तो अब लगता है मीठा
दवा ही अब कड़वी लगती है

रूप बदल जाता है उसका
जो मुझको अच्छी लगती है

जिनके ख्वाबों में हों उजाले
शब उनको फ़ीकी लगती है

अक्सर मिलकर सागर से क्यों
हर इक नदी प्यासी लगती है

जिनके हिस्से में हैं अँधेरे
रात उनको लम्बी लगती है...