...

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बड़े शौक से....

© Shivani Srivastava
वो जो कुछ भी मुझसे थे कहते कभी,मैं भी सुनती गई सब बड़े शौक से..
फूल राहों में तब भी पड़े थे मगर,कांटे चुनती गई मैं बड़े शौक से...
याद आएंगे उनको भी गुजरे हुए दिन,आज भूले भले हैं बड़े शौक से..
मैंने उनको कभी कुछ भी पूछा नहीं,यादों में क्यूं ढले हैं बड़े शौक से..
मुझ को चुनना था खुद ही चुना रास्ता,रास्ता जो मुड़ा तब बड़े शौक से..
अब तो टूटा है तब ही चुभता है दिल,कभी दिल जो जुड़ा था बड़े शौक से...

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