...

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मोहब्ब्त का शिकार
वो इश्क़ भी क्या इश्क़ था
रात रात भर उसका इंतजार था
बालकनी में आती थी
वो अपने बालों को कुछ यूं सहलाती थी वो
बहुत खूब दिखती थी
वो महबूबा किसी चाँद से कम नही थी वो
लग गयी नजर उसे भी किसी की
बाद में बेवफा सी बन गयी थी वो
पता नही क्या मजबूरी थी
क्या कसूर था
ये इश्क़ था साहब इश्क़ था
न जाने सच मे इश्क़ था या में भी गलत फहमी का शिकार था
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