...

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"प्रणाम करता शान से"
आंखों से प्यारा है हमें,
प्यारा है अपनी जान से.
मादरे अपने वतन पर,
मर मिटें हम जान से.

इस सर जमीं ए हिंद को,
प्रणाम करता शान से.
सोने की चिड़िया था कभी,
जब पूजते थे भाव से.

माँ भारती बलिदान से,
सतियों के जीवन दान से.
रक्तिम ये अग्नि कह रही,
ध्वजा के तेरे नाम से.

भगवा था प्यारा प्राण से,
हर काल में यह जान से.
त्याग और बलिदान की,
धारा निकालो म्यान से.

कण कण धुला है खून से,
वीरों की अपनी जान से.
गुरुओं ने पूजा है इसे,
ऋषियों ने तप और ज्ञान से.

माँ भारती सम्मान से,
पूजेंगे तुझ को भाव से.
दुख दर्द हम पी जायेंगे,
डरते नहीं बलिदान से.
उपरोक्त रचना मेरी स्वयं रचित मौलिक
रचना है. - महेन्द्र मध्यम.
© mahendramadhyam