...

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आलिंगन
जब लगने लगे एकाकीपन
तो
सुनो सखा,
नदी, पहाड़,झरनों का
तुम आलिंगन कर लेना
जब भी उदासी छाने लगे
ठंडी बयारों संग बह लेना
लगने लगे जब कठिन जीवन
फूलों में जा कर बस जाना
कांटों में महकती कलियों के संग
तुम भी खुल कर मुस्काना
जब लगने लगे स्वार्थी सारा जग
तब खुद को समर्पित कर देना
कोई काम ना आए तुम्हारे तो
तुम खुद को जग के लिए अर्पित कर देना
पर
जब हो जीवन में खुशियों का रेला
तो
सुनो सखा,
अपना अभिमान तज देना
अपनी खुशियां और मुस्कानों से
हर भीगी पलकों को हर्षाना
कर के आलिंगन उदिग्न हृदय का
दूजों का विषाद हर लेना
कभी नील गगन में उड़ कर के
बादल की नन्ही बूंदे बन
मिट्टी को तुम महकाना
करके आलिंगन सितारों का फिर
तुम प्रेम प्रभा बिखराना
चंद्र किरणों में घुल मिल कर के
प्रेम पिपासु धरा से
तुम गलबहियां कर लेना
बस ऐसे ही
कर के आलिंगन इस जग का
तुम प्रेम सरिता बन बह जाना

© Ranjana Shrivastava