...

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परिंदा आसमा का
हा महकती हूं गुलाब सी
मगर चाह कर भी इतरा नही सकती....

मन करता है अजनबी चेहरों से मिलने का
मगर इन चार दिवारियो के पार में जा नही सकती

आंखों में नमी है मगर आसू में पलको से गिरा नही सकती

ख्वाहिश ऊंचे आसमां में उड़ने की मगर पंख आसमा में फैलाए बिन में मर नही सकती

बंदिशे हजार है मगर जीते जी अपनी
मौत नही चुन सकती......
-puru sharma