...

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चिंतन
डर लगता था जब तुम संग थी मेरे
नए किताबों की पन्नों की तरह समेट कर रखता था तुझे

चर्चाएं कुछ भी होतीं बारे में तुम्हारे
पर तेरी हर बातों में हां में हां मिलना,अच्छा लगता था मुझे

आँखें मनमोहक,होंठ की बनावट लाजबाव
चाहत की दुनियां में हद से ज़्यादा खूबसूरत लगती थी मुझे

अनियंत्रित हो तन मन मेरा जो बहके
हाथों की कोमलता तेरे कल्पनाओं मात्र पा स्पर्श जगा देती मुझे

बड़ी विडंबना है इस दिल की लोग जाते जाते दूर
छेड़ जातें हैं तार दिलों,दस्तक दे जाती हैं यादें लंबे अरसे तक....