आचरण
करोड़ो जन के चेहरे, अरबो रचना से लिप्त यह कही कलेवर
कहीं पहाड़ के है मीठे स्वभाव, कहीं कंकड़ भी दिखाते तेवर
श्रोतागं अनेक हर पक्ष के, चाहे वो मौनदारी, या फिर वक्तागं
सुनते कही लाख, समझते कुछ हजार,बोलते सिर्फ दो चार
मालामाल,वो कारक ही है, बस काम कैसा? यह, सवाल है
तुम उस कारक दिन से आज तक क्या हो? जो होता जवाब है
कर्म भी एक यज्ञ है, जो आज अर्पण...
कहीं पहाड़ के है मीठे स्वभाव, कहीं कंकड़ भी दिखाते तेवर
श्रोतागं अनेक हर पक्ष के, चाहे वो मौनदारी, या फिर वक्तागं
सुनते कही लाख, समझते कुछ हजार,बोलते सिर्फ दो चार
मालामाल,वो कारक ही है, बस काम कैसा? यह, सवाल है
तुम उस कारक दिन से आज तक क्या हो? जो होता जवाब है
कर्म भी एक यज्ञ है, जो आज अर्पण...