ऑंखों का काजल
#TheUnrequitedLoveऑंखों का काजल
2....
यूँ तो जहां में और भी थे, दीदावर निग़ाहों के लिए,
सूरत मगर भायी वही बस, बस उसे तकता रहा मैं।
हाथ यूँ तो इश्क़ में आया सुकूँन भी किसे भला कब,
अंजाम मेरा भी बस वही, शबभर रोया, तन्हा जगता रहा मैं।
यूँ तो सुना है के संभल जाते हैं, खाकर ठोकरें लोग,
एक हम थे के यादों में फ़क़त अब तलक़ भटकता रहा मैं।
क्या करें...
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यूँ तो जहां में और भी थे, दीदावर निग़ाहों के लिए,
सूरत मगर भायी वही बस, बस उसे तकता रहा मैं।
हाथ यूँ तो इश्क़ में आया सुकूँन भी किसे भला कब,
अंजाम मेरा भी बस वही, शबभर रोया, तन्हा जगता रहा मैं।
यूँ तो सुना है के संभल जाते हैं, खाकर ठोकरें लोग,
एक हम थे के यादों में फ़क़त अब तलक़ भटकता रहा मैं।
क्या करें...