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शहरी परेशानी.....
#खोईशहरकीशांति
वो समय आया है
हर शख्स परेशां है
कुछ है जिम्मेदारियों की बोझ
ज्यादा है होड़ सबसे आगे निकल जाने की
ऐश्वर्य मे रहने की पिपासा
मनुज को न जाने कहाँ ले जाए
ये डायन जिसके सर बैठती है
मन अपराधी हो जाता है
लगाम किसीके पास नही है आजकल
न तन पे, न मन पे, न जुबां पे और
न निगाह पे
संयम मे मनुष्य नही ।
पर मनुष्य भी करे क्या....??
निगाहो को सिर्फ अच्छा देखना है
जुबान के स्वाद मे कितनी बढौतरी हो गई
अच्छे लिबास से जिस्म सजना चाहता है
कहते है कलियुग है
इसमे यही सब होता है
पर हमारे गाँव... यकीन करे
इस प्रतिस्पर्धा से दूर है
इसलिए वहा आज भी लोग सुकून मे है
अपराध नही है
मै अक्सर गाँव जाता रहता हूँ
रोज उगते सूरज दिख जाते है
ढलती शाम मे चिडियों के
अपने घर लौटने का मधुर संगीत
आहा....
हर घर से रसोइ की खुशबू
आते जाते लोग रूककर दुआ सलाम करते
यहाँ शहर मे बगल से गुजर जाते है जाननेवाले
काम होगी तो बात करेगे
ऐसा लगेगा सबको ट्रेन पकडनी है
मिट्टी का शरीर मिट्टी हो जाना है
पर यहाँ आकर जाना हमने
कि यहाँ मिट्टी भी बिकती है
और अगर किमत की हैसियत है
तो शहरो मे सबकुछ खरीदा जा सकता है
यहाँ तक की रिश्ते भी
मगर गाँव की कुछ चीजे अनमोल है
अमरैया मे कोयल की कू और
पपीहे की पीहू पीहू
कहाँ पाओगे शहर मे ??
सांसें ले रहा हूँ
पर जींदा कहाँ हूँ
वैसे तो मृत्यु सत्य है
पर गावो मे लोग ट्रैफिक मे नही मरते
अपनी उम्र पर मरते है
सुकून से जीते है