...

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बचपन
नन्हे सपनों में एक उंगली थामे हुए
चल पढ़ते थे किसी की भी कंधों पर टैग ते हुए
कभी एक छोटी मुस्कान सबको हंसती थी
कभी रोने की आवाज सबको रुला ती।
खेल खिलौनों में हम इतने गुल मिल जाते थे
की वह हमारी पूरी दुनिया बन जाती थी
बड़ों के बड़बोले पन को समझना नहीं चाहते थे सबको हर पल खुशी भरी निगाहें देखना चाहते थे
हर वक्त बस ढूंढते दे एक लाड एक नया प्यार ऐसे ही बचपन बीत जाता था
हर डगर को आगे ले जाता था जन्मदिन भी ऐसा आता था।
नन्हे कदमों से आंगन को नापना चाहते थे
गिराने के डर से सब हमको रोक जाते थे।
ना जाने क्यों डरते थे मेरे अपने
बचपन में तो सब खुले आसमान में पंछी बनकर उड़ ना चाहते थे
हम तो नन्हे सपनों में अपना बचपन जीना चाहते थे।।