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मैं क्या करूँ?
दिल न लगे किनारे, तो मैं क्या करूँ?
मझधारे झंझा पुकारे, तो मैं क्या करूँ?
मुशाबह-ए संग तुझे; मैं न कभी मानूँ!
फिर तू वही रूप धरे, तो मैं क्या करूँ?
हो गर कलंकुरे, तो मन वार भी लूँ;
कश्ती डूबे किनारे, तो मैं क्या करूँ?
अश्क बड़े समीन है, ये मैं जानूँ,
लेकिन; कोई आँचल फैलाए, तो मैं क्या करूँ?
सितारों से तेरी ज़ुल्फ़ें मैं जड़ दूँ,
मगर; तू आए ही सवरे, तो मैं क्या करूँ?
© AeyJe
मझधारे झंझा पुकारे, तो मैं क्या करूँ?
मुशाबह-ए संग तुझे; मैं न कभी मानूँ!
फिर तू वही रूप धरे, तो मैं क्या करूँ?
हो गर कलंकुरे, तो मन वार भी लूँ;
कश्ती डूबे किनारे, तो मैं क्या करूँ?
अश्क बड़े समीन है, ये मैं जानूँ,
लेकिन; कोई आँचल फैलाए, तो मैं क्या करूँ?
सितारों से तेरी ज़ुल्फ़ें मैं जड़ दूँ,
मगर; तू आए ही सवरे, तो मैं क्या करूँ?
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