एक दिन रब से
" भूखो से रोटी छीनी है आह लगे
रब भी मुझको ऐसे बेपरवाह मिले,
मुझसे हैरत होगी तुझको इश्क नहीं
जा शहजादी तुझको तेरा शाह मिलें,
खेतो में जो बोयी थी फसल नई
सोचा था मेने कुछ अनाज मिलें,
जो बोया है वही एक दिन पाओ गे
पाया तो कुछ नहीं,शब्द हजार मिलें,
क्या बोया और क्या पाएगे
एक दिन रब के घर जाएगे,
बतलाऐ गे हम अपनी गलती
हल फिर उससे करवा गे,,
© Satyam Dubey