...

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Bazaar-e-ishq
बजार-ए-इश्क में दिल घबराने लग गया है।
जिस हसीन चेहरे के होने से जिंदगी खुशहाल हुआ करती थी,
वही शख्स मुझे रुलाने लग गया है।

जमाने की उदासी से कल जिसकी बातें मेरा दिल बहलाया करती थी,
वो अपनी ही बातों में मुझे उलझाने लग गया है।

उसके बदल जाने का अंदाजा इसी बात से लगा लेना,
वो अब मुझे मेरा पूरा नाम लेकर बुलाने लग गया है।

शाम-ए-महफिल में जो मेरे बगैर जाने से कतराता था,
वो शख्स मेरे वहांँ होने से घबराने लग गया है।

कल जिसकी सादगी का मैं कायल हुआ करता था,
वही शख्स मुझ पे अब चिल्लाने लग गया है।

ये सिलसिला तब से ही शुरू हुआ,
जब से वो मुझे मेरा पूरा नाम लेकर बुलाने लग गया है।

शायद मेरी बेपरवाही/आवारगी अब उसे सताने लग गया है,
इश्क के बदलते इस दौर में कोई और उसे रिझाने लग गया है।

मेरे यादों/ख्यालों से परे गैर के ख्यालों मे, मैं‌ उसके लिए जरूरी नहीं,
मेरा महबूब या वो शख्स उसे बताने लग गया है।

उसके वादे और इरादे उसी से कहीं दूर अब ठिकाने लग गया है,
यूं ही नहीं वो शख्स मुझे मेरा पूरा नाम लेकर बुलाने लग गया है।

© ✍️vc_darpan