...

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वो भूलते नहीं हैं।
मुरव्वत जरा भी नहीं करते,
मुझे दिल से मिटाना वो भूलते नहीं हैं।
सुबह के खालीपन में मुझको,
अकेला छोड़ जाना वो भूलते नहीं हैं।
मैं सो जाता हूं थक के, चूर हो कर के,
मेरे ख्वाबों में आना वो भूलते नहीं हैं।
माना बड़ी जल्दी आंख लगती है,
मगर आंखें खोल जाना वो भूलते नहीं हैं।
घरों की खिड़कीयों पे धूल के जैसे,
मुझे दिल से हटाना वो भूलते नहीं हैं।
सहर की इन ठंडी ब्यारों में,
मुझे तिल तिल जलाना वो भूलते नहीं हैं।
हैं बड़े अच्छे दिल के तभी यारों
जला कर दिल मरहम लगाना वो भूलते नहीं हैं।
जाएं भूल चाहे जमाना ये मगर फिर भी,
रुला कर मुझको हसाना वो भूलते नहीं हैं।
© Prashant Dixit