...

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काश वो दिन आता
मशवरा हमें देते,उलझा हुआ खुद रहता
कांटे हमारे हटाते, कांटों में फंसा खुद रहता

नाराज़ भी रहता, चुपके से रंग भी लगाता
खता मुआफ होती, पकवान साथ में जो खाता

दूर हो गए हैं आज,काश फिर से वो दिन आता
शरारती दोस्त मेरे,पल-पल है याद आता ।

© Bhawna kumari