...

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दर्द ए दिल
रात काली खंजर सी हैं
मरहम सी सजी सुबह सुहानी
सोचती हूं जिसके बारे में
उसकी यादों में डूबी हैं मेरी पुरी जिंदगानी
लिखती हुँ इक नगमा लावारिस सी
जिसमे समय इक भूली बिसरी निशानी
क़्या लिखू इस कश्मकश में हुँ
जैसे मृगतृष्णा हो तेरा प्यार
इक पल भर की निशानी
© 𝖐𝖎𝖘𝖒𝖆𝖙