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दर्द और ख्वाहिशे
कुछ यूँ बेगाने हुए हम, उनकी नज़रो के तले
रफ्ता-रफ्ता ही सही,साँस भी रूकने लगे
आँखे नम होती मगर, रूह में अगन लगे
देखूं रिमझिम बूंदो को तो दिल बस मेरा जले
एक नज़र बस देखूँ उनको,मन में ये अरमाँ पले
किस्मत कुदरत सब भूलूँ मैं, गर मिल जाए तू हर शाम ढले ।।
रफ्ता-रफ्ता ही सही,साँस भी रूकने लगे
आँखे नम होती मगर, रूह में अगन लगे
देखूं रिमझिम बूंदो को तो दिल बस मेरा जले
एक नज़र बस देखूँ उनको,मन में ये अरमाँ पले
किस्मत कुदरत सब भूलूँ मैं, गर मिल जाए तू हर शाम ढले ।।
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