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सॉरी - एक छलावा
वैसे तो स्वयं सम्पूर्ण शब्द ये कहलाता है,
एक शब्द पूरी कहानी बतला जाता है,
क्रोध पिघले जैसे मक्खन कोई,
सारे गिला शिकवे भुला ये रिश्ते बचाता है।
कहने वाला इसे ब्रह्मास्त्र समझ कर,
तब इस्तेमाल में लाता है,
कुछ और उसे नहीं सूझता,
बोल सॉरी अपना गला बचाता है।
पर क्या वो दुःख वो दर्द,
तनिक वो समझ पाता है,
जिस भूल का वो क्षमाप्रार्थी है,
क्या उस भूल को बदल पाता है।
टूटा था दिल, हो गया था छलनी कलेजा,
क्या वो टुकड़े फिर बटोर वो पाता है,
जिस दर्द से लड़कर फिर जीना सीखा,
वो दर्द क्या थोड़ा भी कम हो पाता है।
उस भूल को भुला कर, सॉरी के नाम,
इंसान आगे तो अवश्य बढ़ जाता है,
पर क्या ये सॉरी, उन जख्मों पर,
एक मरहम भी लगा पाता है।
सॉरी बोल हक़ से फिर एक,
मौका वो मांग ले जाता है,
सब ठीक करने का वादा कर,
क्या कोई उसको निभा भी पाता है।
✍️
© शैल
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