...

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कुसंग, क्या है, कौन है !
जब भी यह शब्द सुनता हुं,
तो गौर करता हुं, कहीं यह मे तो नहीं
मे या कोई दुसरा नहीं हे ये
अन्दर छुपा माहिर खिलाड़ी हे ये
भीतर ही भीतर, कमजोर करता
श्वांस की भी जरूरत ना इसको
ऐसा अहंकार, सदा ही भरता
खुद की खुद से लढाई हे ये
हार मान लें तो बस इतनी सी जान हे ये
कभी लोभ करता, तो कभी कपट
युद्ध मे शान्त न रह पाऐ,
ऐसा हे ये नटखट
अन्दर की कोई कोने मे छुपे
दुसरे संगो को ढुंढना हे अब
ऐक नई दिशा की और बढ पाऐगें तब

© Birendra Debta