...

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"रंगों की सौगात"
आ ही गया फ़ागुन लेकर "रंगों की सौगात"सुनहरी
रंग दे अपने हाथों सैया रंगने को बेताब है कब से गोरी
कोरे दामन अंग लपेटे कब से फिरती थी अकेली
पिचकारी छिड़क के साजन तंग चोली की कर दे डोरी
दिल के कोने में कब से समेटे रखा थी ख़्याल बहुत सारी..
चल मीत मेरी सासों में भर दे प्रेम का हर रंग थोड़ी थोड़ी..

बचपन की होली , जीजा साली की रंगीन होली
रंगों से सजी वो मस्ती वाली अटखेलि
कभी फाग की ताने छेड़ती कभी धूम मचाती मतवाली टोली
धरती पे रंगों की नदियाँ अम्बर में सजी रंगोली
हर जज्बातों को समेटे खुशियों से भरी वो अब तक कि होली
फिर भी कुछ ख़्याल कब से थे बंद दिल के किसी कोने में हमराही
प्रेम मिलन और चाहतों के कुसुमन बया करती चाहत की होली।