कभी शमशान नहीं देखा।
कभी शमशान नहीं देखा,
कभी जलती चिता नहीं देखी,
लगता है जैसे जीवन के हिसाब किताब का सार नहीं देखा,
एक आस उठी मन में उस से पहले सौ सवाल खड़े हो गए,
क्या कभी किसी भी स्त्री ने जीवन का अंतिम घाट नहीं देखा,
क्या एक स्त्री होना इतना बुरा,
आज फिर लगता है मैं हाशिये पर हूँ,
मैं अपने ही जीवन के कड़वे सच से वंचित हूँ,
जब जाना है मुझे भी एक दिन वहीं,
क्या तब मैं एक स्त्री नहीं हूँ? ,
क्या स्त्री होना इतना बुरा की मैं...
कभी जलती चिता नहीं देखी,
लगता है जैसे जीवन के हिसाब किताब का सार नहीं देखा,
एक आस उठी मन में उस से पहले सौ सवाल खड़े हो गए,
क्या कभी किसी भी स्त्री ने जीवन का अंतिम घाट नहीं देखा,
क्या एक स्त्री होना इतना बुरा,
आज फिर लगता है मैं हाशिये पर हूँ,
मैं अपने ही जीवन के कड़वे सच से वंचित हूँ,
जब जाना है मुझे भी एक दिन वहीं,
क्या तब मैं एक स्त्री नहीं हूँ? ,
क्या स्त्री होना इतना बुरा की मैं...