राहों में बिछे काॅंटे
यह राहों में बिछे काॅंटे सबक़ थे ,दिल में उठ रहे कई कसक थे।
क्या तुम पर भरोसा करने के ही, हमें मिल रहे ये सब सबक़ थे।
तुमसे दिल लगा कर मिल रहे ,हर दिन मुझे नये-नये ही दर्द थे।
दिल लगाकर फिर धोखाधड़ी करना , आख़िर तुम कैसे मर्द थे।
आंखें तुम्हारी कुछ और , जुबां कुछ और ही बयां करती रही।
देख तुम्हारी ऐसी हरकतें ,मेरे दिल की उलझनें...
क्या तुम पर भरोसा करने के ही, हमें मिल रहे ये सब सबक़ थे।
तुमसे दिल लगा कर मिल रहे ,हर दिन मुझे नये-नये ही दर्द थे।
दिल लगाकर फिर धोखाधड़ी करना , आख़िर तुम कैसे मर्द थे।
आंखें तुम्हारी कुछ और , जुबां कुछ और ही बयां करती रही।
देख तुम्हारी ऐसी हरकतें ,मेरे दिल की उलझनें...