...

15 views

आख़िर क्यों सीमित हो जीता है इंसान...
ये कैसा बन्धन या समजिकता है
ना समझ पाता हूं कभी...
कि सीमित कर दिए जातें है हर जज़्बात
दबा दिए जाते हैं मन में उठते हर उन्माद...

क्यों होता है ऐसा..
कि सब कुछ अच्छा मस्त होते हुऐ भी
क्यों अच्छे लगने लग जातें है किसी दूजे के...