...

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इम्तिहान और बाक़ी है
दरारें ज़मीं के सीने में,
ये किसकी साज़िश है ?
आसमां के साथ हुई,
क्या कोई रंजिश है ?
सागर की लहरें खारे बुझे
कैसे साहिल के प्यास है ?
गीली रेत पर बने घरौंदे
पक्की छत की कैसी आस है ?
जल रही है, दहक रही है,
फ़िर क्यूँ चूल्हें ठन्डे है ?
सूखी मिट्टी , सूखे कुएँ ,
फ़िर क्यूँ बरसती आँखे है ?
बढ़ रहे है व्याज के क़िस्ते,
कर्ज़ चुकाना अभी बाक़ी है !
आसमां का दम्भ टूटकर
बूँदों में बरसना अभी बाक़ी है !
वक़्त की स्याही से लिखे फ़ैसले
पन्ना पलटना अभी बाक़ी है !
बदलेगा मिज़ाज मौसम का,
के वक़्त का बदलना अभी बाक़ी है!
लहराएगी धानी चुनरिया,
बस, दो घड़ी इम्तिहान की और बाक़ी है !