रंगभूमी (प्रथम पर्व)
वीर न जन्मते केवल राजमहल में,
कुछ पलते जंगल और कुटियो में।
नगर के कोलाहल से दूर, शांत कानन में
एक युवक लगा है तन मन से कुछ पाने में ।
खुद को सिद्ध कर दिखाने में ।
ना मन में दुरविचर, ना कोई आकांक्षा
ना किसी से द्वेष, ना कोई अहंकार
नित्य कठोर परिश्रम में लगा, ताकि
प्रताप से परिचित हो सारा संसार।
यही आस मन में बांधे, कर तप
कर घोर साधना और अभ्यास
कर्ण ने किया स्वयं का विकास ।
समाज निंदा, बचपन से...
कुछ पलते जंगल और कुटियो में।
नगर के कोलाहल से दूर, शांत कानन में
एक युवक लगा है तन मन से कुछ पाने में ।
खुद को सिद्ध कर दिखाने में ।
ना मन में दुरविचर, ना कोई आकांक्षा
ना किसी से द्वेष, ना कोई अहंकार
नित्य कठोर परिश्रम में लगा, ताकि
प्रताप से परिचित हो सारा संसार।
यही आस मन में बांधे, कर तप
कर घोर साधना और अभ्यास
कर्ण ने किया स्वयं का विकास ।
समाज निंदा, बचपन से...