...

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अब बस कर ज़िन्दगी....

आंसू खत्म हो चुके अब और
कितना रुलाएगी?
सब्र भी और होता नहीं और
कितना तड़पाएगी?
लगता था चलते रहेंगे तो मंज़िल
मिल जाएगी,
पर चलते रहे तो बस चलते ही रहे......
फिर एक मोड़ पर लगा अब क्या
मंज़िल आएगी?

गीता में लिखा है कर्म कर फल की
इच्छा करना नहीं,
सब ऊपर वाला देख लेगा बंदे तू
किसी से डरना नहीं।
फल की इच्छा ना की तो फल कभी
मिला भी नहीं।
और ऊपर वाले ने तो कुछ देखा ही नहीं.....
और उसने कुछ देखा भी हो तो कुछ
किया ही नहीं।

किस्मत का खेल था नहीं बदल पाए
लकीरों को,
फल क्या मिलता खेरात भी ना मिली
फकीरों को।
भाग्य विधाता देता है सब पर देता है
अमीरों को,
कभी तो आज़ाद होंगे हम.......
बता ज़िन्दगी क्या कभी खोलेगी तू
इन ज़ंजीरों को?

अब बस कर ज़िन्दगी और कितना
खेल खेलेगी हमसे?
तुम जीत गई और हम हमेशा की
तरह हार गए तुमसे।

by Santoshi