...

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कोरे कागज़।
लिख कोरे पन्नों को इस कदर यूँ उनको भर डाला,
कि वो भी पूछ उठे ये तूने क्या कर डाला!?
दिलों जुबान पे नाम है जिसका उनकी यादें घुली थी स्याहि में,
हांथ सिर्फ कलम लगी थी बाकी कसूर स्याहि के।
सोचा नाम बता दूँ उसका फिर आते बेदर्दी सवाल हजार,
कमबख्त आज कोरे कागज़ भी करने लगे सवाल जवाब.
जिन सवालों को ताके दिल ज़ख्मी सा फिरता है,
उन्ही सवालों के बरसातो से कतरा कतरा सहमा है।
राह बिना भी दिल मंजिल ढूंढने निकला उनकी यादो कि मदहोशी से,
आज फिर मतवालि दिल की कश्ति डुबी, विरह आंधियों की...