...

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बूँद-बूँद…
प्यार के सफ़र में अक्सर यह भूल जाता हूँ मैं,
पूछो कौन है वो सजन जिसको इतना चाहता हूँ मैं …
परछाई का राज एहसास से निकालना चाहता हूँ मैं,
बूँद-बूँद से बढ़कर उसको सागर बनाना चाहता हूँ मैं…

गुलाब की कली है वो मगर ख़ुशबू से परे क्यों ?
ढूँढ रहा हूँ ख़ुशबू उसकी वो ज़िंदगी में हरे क्यों ?
चाहे हज़ारो काटो की कगार हो उसके इर्द गिर्द,
शिद्दत से उसको ख़ुशबूदार गुलाब बनाना चाहता हूँ मैं…
बूँद-बूँद से बढ़कर उसको सागर बनाना चाहता हूँ मैं…


ईश्वर की है प्रेरणा और मुख़्तसर है उसका ख़्वाब जो,
जोड़ने में विश्वास रखे देती ऐसे सवालों के जवाब वो…
ना जाने कितने दिन-रात गुज़रे जमाने के बैसाख पे,
एह मेरे दिल अब उसकी तस्वीर बनाना चाहता हूँ मैं…
बूँद-बूँद से बढ़कर उसको सागर बनाना चाहता हूँ मैं…

यह वक़्त है के मेरी रचना को शायद मानता ही नही,
मोहब्बत को शायद उसका दिल पहचानता ही नहीं…
अरे नाज़ुक है मेरा इश्क़ और यह रास्ता बड़ा अनजान,
सीने से लगाकर उसको इज़हार बनाना चाहता हूँ मैं…
बूँद-बूँद से बढ़कर उसको सागर बनाना चाहता हूँ मैं…

#जलते_अक्षर


© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻