मेरे लेख में तुम
श्रृंगार तुम्हारा मानो वार मोहपास का,
मखमल सा बदन जैसे कोपल कपास का;
गुनगुनाएं बयार भी ऐसी रागिनी हो,
मृगनयनी, मनमोहिनी या कामिनी हो?
तुम्हारे जुल्फों की ये घटा घनघोर,
मेरे तन-मन को करती भाव विभोर;
संकुचित चाल लगता गजगामिनी हो,
मृगनयनी, मनमोहिनी या कामिनी हो?
मद्यपात्र नयनों से उन्माद जरा गर छलक आए,
सुराप्रेमी संसार सम्पूर्ण...
मखमल सा बदन जैसे कोपल कपास का;
गुनगुनाएं बयार भी ऐसी रागिनी हो,
मृगनयनी, मनमोहिनी या कामिनी हो?
तुम्हारे जुल्फों की ये घटा घनघोर,
मेरे तन-मन को करती भाव विभोर;
संकुचित चाल लगता गजगामिनी हो,
मृगनयनी, मनमोहिनी या कामिनी हो?
मद्यपात्र नयनों से उन्माद जरा गर छलक आए,
सुराप्रेमी संसार सम्पूर्ण...