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बादल सिरहाने , लिखूं क्या मैं तेरे बारे?
अल्फाज पड रहे कम, तुझे ख़्वाबों में बसारे
झूठ नहीं बोलता कलम, राते जागे नींदे मारे!
एक हां की आजमाइश है, फिर जमाना क्या बिगाड़े

संभाला जब से होश है , सुरूर तेरे दीदार का
दिल ये मदहोश है , कसूर तेरे इंकार का
चाहतों का ऐतबार नहीं, ना कर इंतजार ललकार का
हम दो जिस्म एक रुह, खेल नहीं ये प्यार का।
© Madhusudan