...

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शहर मे उनके जाना गुनाह हो गया
अपना शहर अंजाना हो गया,
जब से दिल दूसरे शहर मे खो गया,
रहता था मस्ती मे ये कभी,
ना जाने क्यों ये उनकी बातो मे आ गया

जब से आया उन पर ये हमसे रूठ गया,
नींद का दामन भी आँखो से छुट गया,
मंज़िल पाने की राह मे निकल था ये कभी,
अब अपने घर का पता ही भूल गया

बर्बादियों के जश्न मे ये मशरूफ हो गया,
पहले की तरह अब हँसना भूल गया,
और थोड़ा दूर हुआ उनसे ये कभी,
रोक कर धड़कने ये मुझको बेसहारा कर गया

सच कहूँ यारो शहर मे उनके जाना गुनाह हो गया,
क्यों ये दिल उनका दीवाना हो गया,
सुकूँ और खामोशी मे रहता था ये कभी,
बेवजह जमाने भर मे गमों का ठिकाना हो गया
©Rohan Mishra (alfaaz_rohu_ke)

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© alfaaz_rohu_ke