वंशवाद से वृद्धाश्रम तक
कौन बतायेगा उसे की वो गिर चुका है ,
पुरुष होने के हम ने गिराया है उसे
बेवजह बहनों पर उठाया गया पचपन का वो हाथ बचपन में ही रोक दिया जाता तो आज बीबी आए दिन पीटती नहीं रहती,
उदण्डता के सीमा उलंघन के उस पार
जब मा बाप का भरपूर साथ मिलता है
तब पूरी दुनिया पैरों में ही है ऐसा लगता है,
जब हर चाही हुई चीजें समय से पहले ही
मिलने लगती है ,कुछ भी अपशब्द बोलने के बाद भी जब सराहा जाता है, उसे नहीं पता होता कि वो गिर रहा है ,कौन बताए उसे
की जिसे मना करना चाहिए था ,वो बंधे हुए थे उस समय वंशवाद की बेड़ियों मे,
खुली छूट के बीच पला बढ़ा उनका लाल
आज सुबह सुबह ही छोड़ने जा रहा उन्हें
शहर से बहोत दूर
एक अनाथ वृद्धाश्रम में ।
पुरुष होने के हम ने गिराया है उसे
बेवजह बहनों पर उठाया गया पचपन का वो हाथ बचपन में ही रोक दिया जाता तो आज बीबी आए दिन पीटती नहीं रहती,
उदण्डता के सीमा उलंघन के उस पार
जब मा बाप का भरपूर साथ मिलता है
तब पूरी दुनिया पैरों में ही है ऐसा लगता है,
जब हर चाही हुई चीजें समय से पहले ही
मिलने लगती है ,कुछ भी अपशब्द बोलने के बाद भी जब सराहा जाता है, उसे नहीं पता होता कि वो गिर रहा है ,कौन बताए उसे
की जिसे मना करना चाहिए था ,वो बंधे हुए थे उस समय वंशवाद की बेड़ियों मे,
खुली छूट के बीच पला बढ़ा उनका लाल
आज सुबह सुबह ही छोड़ने जा रहा उन्हें
शहर से बहोत दूर
एक अनाथ वृद्धाश्रम में ।