फिर से जी लेते हैं
एक आंख मिचौली का खेल
हम भी खेल लेते हैं
हम कभी उठे ही ना
ऐसा फिर से जी लेते हैं
अनंत से दरिया में
छोटी सी नाव में
खुद के ही हाथ में
प्रकृति के साथ में
एक बार फिर से झूम लेते हैं
ऐसा कुछ हम फिर से जी लेते हैं
क्या पता
कब वह शाम आखरी बन जाए
क्या पता
कब हमारा सूरज भी डूब जाए
छोड़ना इन सब फिक्रो को तुम
हो चलना मदमस्त बेफिक्र तुम
ऐसा एक बार फिर से खुश हो...
हम भी खेल लेते हैं
हम कभी उठे ही ना
ऐसा फिर से जी लेते हैं
अनंत से दरिया में
छोटी सी नाव में
खुद के ही हाथ में
प्रकृति के साथ में
एक बार फिर से झूम लेते हैं
ऐसा कुछ हम फिर से जी लेते हैं
क्या पता
कब वह शाम आखरी बन जाए
क्या पता
कब हमारा सूरज भी डूब जाए
छोड़ना इन सब फिक्रो को तुम
हो चलना मदमस्त बेफिक्र तुम
ऐसा एक बार फिर से खुश हो...