...

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कश्ती
कमबख्त दुनिया जनानी को कागज की किश्ती समझ बैठी ...
डुबोती गई समंदर में और गहराई नापती गई ...
उसके हर अकश पे लिखी वो छोटी और गहरी दास्तां वो लहरों के पानी से धोती चली गई..
बे मालूम दुनिया स्याही के दाग मिटाने की की कोशिश में फैलाती चली गई...!
कागज की कश्ती डूब गई ,
आखिर तूफान और लहरों में बेकाबू होती चली गई..
किंतु स्याही के निशान वो समंदर में बहाती चली गई...!!
© cheery