...

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समर्पण।
समर्पण।-

मैं कुछ कहूं मेरे बस में नहीं।
भीतर कहीं उजालों में पतींगों सा बलिदान दु।
यहां अपने होने का एहसास मिटाकर एक नई पहचान दु।

मैं कुछ लिखूं मेरे बस में नहीं।...