...

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रूक्मिणी
कृष्ण तेरी राधिका नहीं,
रूक्मिणी मुझे है भायी|
मूर्तियों में नहीं रे कान्हा,
संग तेरी रास आयी||

मैं राधा में, मुझ में राधा
राधे प्रिय मुझे स्वयं से ज्यादा
फिर क्यों ना भाये राधा रानी?
क्यों लिए बैठीं हो रूक्मिणी कहानी?

राधा के वो मरुस्थली नैना,
हर पल, हर क्षण कान्हा - कान्हा ही कहना,
'राधा- कृष्ण' संग, जग पुजन में लाएं,
द्वापर में तो नहीं अपनाए,
तुम ही कहो कैसे बनु राधिका,
गा नहीं सकती गीत विरह का!!

और मीरा के निर्झर नैना,
अंतिम क्षण भी कृष्णा कहना,
जग की बात छोड़ो ही कान्हा,
अपनो ने क्या अपनाया था?
"कुल्क्षिणी " कह ठुकराया था |
तुम ही कहो कैसे बनु मीरा,
सहन न होगी इतनी पिड़ा!!

कृष्ण तेरी मीरा नहीं,
रूक्मिणी मुझे है भायी||
पदावली नहीं- नहीं रे कान्हा,
सिन्दूरी मुझे लुभाई||

नहीं चाहिए मुझको जग से अर्चना वंदना
सुन मेरे कान्हा बस इतनी जतन करना
भर के माॅऺग तुम मेरी,
ओ भर के माॅऺग तुम मेरी|
रीत से मीत तुम बनना
ओ मेरे से मीत तुम बनना||

कृष्ण तेरी राधिका नहीं,
रुक्मिणी मुझे है भायी|
मूर्तियों नहीं- नहीं रे कान्हा!
संग तेरी रास आयी!!

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