...

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क्यूँ सताती हो...?
रात की खामोशी में, तेरी यादें गुनगुनाती हैं,
तू नहीं मगर क्या करूँ, बातें तो याद आती हैं।

रुकते नहीं एहसास दिल के, पास बहुत होती हो,
नाम तुम्हारा जेहन में, साँसों संग तुम बहती हो।

किया बहुत मजबूर तुमने, दूरी तुमसे, ख़ातिर तेरी,
चली गई हो, क्यूँ नहीं जाती, अब क्यूँ सताती हो?
© विवेक पाठक