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~तुम्हें देखा~
आज तुम्हें देखा,
बरसों बाद फिर तुम्हें देखा,
अरसा गुज़र गया,
पर आज फिर तुम्हें देखा।
देखते ही तुम्हें,
कुछ मुझमें बिखर गया,
जिसे बरसों से दिल में समेटे,
मैं चलता गया, चलता गया।
आज इच्छा न हुई
कदम कुछ आगे रखने की,
तुम्हारी जुल्फें देख,
न जाने क्यूं सब ठहर सा गया।
© Vaishali
बरसों बाद फिर तुम्हें देखा,
अरसा गुज़र गया,
पर आज फिर तुम्हें देखा।
देखते ही तुम्हें,
कुछ मुझमें बिखर गया,
जिसे बरसों से दिल में समेटे,
मैं चलता गया, चलता गया।
आज इच्छा न हुई
कदम कुछ आगे रखने की,
तुम्हारी जुल्फें देख,
न जाने क्यूं सब ठहर सा गया।
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