...

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मृगतृष्णा
मृगतृष्णा सी मन में है,जीवन कितना प्यासा है।
बीते कल से छूटा नही, अगले कल की आशा है।।
मर्माहत मन को चैन नही, यह कैसी निराशा है।
सागर की चाहत है दिल में,मृगतृष्णा ने फाँसा है।।