अब मैं बदलने लगी हूं...
ख्याब से ज़रा जगने लगी हूं
जिंदगी को बेहतर समझने लगी हूं
लफ़्ज़ों की मुझको जरूरत नहीं है
चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगी हूं
थक जाती हूं अक्सर जब शोर से
खामोशियों से बातें करने लगी हूं
दुनियां की बदलती तस्वीर देख कर
शायद मैं कुछ कुछ बदलने लगी हूं
नफ़रत के जहर को मिटाना ही होगा
इरादा यह मजबूत करने लगी हूं
परवाह नहीं कोई साथ आए मेरे
मैं अकेली ही आगे बढ़ने लगी हूं।
जिंदगी को बेहतर समझने लगी हूं
लफ़्ज़ों की मुझको जरूरत नहीं है
चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगी हूं
थक जाती हूं अक्सर जब शोर से
खामोशियों से बातें करने लगी हूं
दुनियां की बदलती तस्वीर देख कर
शायद मैं कुछ कुछ बदलने लगी हूं
नफ़रत के जहर को मिटाना ही होगा
इरादा यह मजबूत करने लगी हूं
परवाह नहीं कोई साथ आए मेरे
मैं अकेली ही आगे बढ़ने लगी हूं।