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मैं चलता रहूँगा।
यूंही गिरता संभलता रहूंगा
रुकूँगा नहीं,मैं चलता रहूंगा।
ये धुंध, ये कुहासा, ये बादल
कब तक रोकेंगे मुझको
मैं सूरज हूँ, हर दिन निकलता रहूंगा।
मेरी तरबियत ही में है जलना
दिया बन के अंधेरों को खलता रहूंगा।
रुकूँगा नहीं, मैं चलता रहूंगा..
जमाने की आहें और बद-दुआएं
बिगाड़ेंगी क्या मेरा
मैं माँ की दुआओं से पलता रहूंगा।
कोई विघ्न बाधा यदि रोकेगी मुझको
मैं विजेताओं के वाक्यों को रटता रहूंगा।
कभी जब गिरूँगा निराशा के गर्त में
यही अमर वाक्य में जपता रहूँगा।
कि कुछ सपनों के मर जाने से
जीवन नहीं मरा करता है।
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
जन्मदिन विशेष
#कवि गोपाल नीरज जी को समर्पित
अंतिम पंक्ति उन्हीं की कविता से है।
© Ved वेद
रुकूँगा नहीं,मैं चलता रहूंगा।
ये धुंध, ये कुहासा, ये बादल
कब तक रोकेंगे मुझको
मैं सूरज हूँ, हर दिन निकलता रहूंगा।
मेरी तरबियत ही में है जलना
दिया बन के अंधेरों को खलता रहूंगा।
रुकूँगा नहीं, मैं चलता रहूंगा..
जमाने की आहें और बद-दुआएं
बिगाड़ेंगी क्या मेरा
मैं माँ की दुआओं से पलता रहूंगा।
कोई विघ्न बाधा यदि रोकेगी मुझको
मैं विजेताओं के वाक्यों को रटता रहूंगा।
कभी जब गिरूँगा निराशा के गर्त में
यही अमर वाक्य में जपता रहूँगा।
कि कुछ सपनों के मर जाने से
जीवन नहीं मरा करता है।
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
जन्मदिन विशेष
#कवि गोपाल नीरज जी को समर्पित
अंतिम पंक्ति उन्हीं की कविता से है।
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