...

123 views

मैं और गौरैय्या 🕊️

हर भोर मानों गुनगुनाती है
एक खुबसूरत मधुर गीत सुनाती है

तमस शनै: शनै: छटता जाता है
आलोक कुछ यूं घर आता है
मानो गोरी के चेहरे की मुस्कान
खिलखिलाहट में तब्दील हो जाये

मेरे कमरे में तमस कोनों में
छुप जाता है
मानों आलोक से लुका-छिपी
खेल रहा हो

मैं कमरे की लाइट जला देता हूं
और मोबाइल में खो जाता हूं
इससे पहले कि गुड मार्निंग मैसेज
भेज पाऊं

खिड़की पर एक छोटी सी गौरैय्या
आ बैठती है
कभी जल्दी जल्दी, कभी तीव्र स्वर में
जाने क्या क्या कहती है

समझ में तो कुछ नहीं आता है
पर मन को बहुत भाता है

मैं मोबाईल में खोये रहने का अभिनय
करता हूं
पर आंखों के कोनों से उसको
तकता हूं

कोई आत्मीय जैसे बतियाता है
उतनी तन्मयता से वो बतियाती है

तब तक बतियाती रहती है
जब तक मैं लाइट बुझाकर
मोबाईल नं रख दूं

हर भोर यही कहानी दोहराती है
कुछ देर में गौरैय्या उड़ जाती है
मैं ख़ाली खिड़की की ओर
तकता हूं

फिर सोचता हूं गौरैय्या आखिर
क्या कहती है ?

शायद ' गुड मार्निंग' ;
या सुबह सुबह
मोबाईल में खोनै पर डांट लगाती है?

'खूबसूरत इतनी भोर है उतर रही
धरा पर और तुम उसका स्वागत
करने के बजाय डूबे हुए हो इस यंत्र में !
चलो बाहर चलते हैं
इस खुबसूरत भोर को रुह में भरते हैं'

अब वह गौरैय्या मेरे भोर का
एक हिस्सा सा हो गई है
अब मैं बेताबी से भोर की राह
तकता हूं
एक आत्मीय से मिलने की
धुन में, खुश रहता हूं ।।

- स्वरचित
© aum 'sai'