...

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अब चुप रहूं तो....
अब चुप जो रहूं तो वज़ह न पूछना,शायद बेवज़ह ही बातें हुई थी
जिस तरह से हूं वैसे पहले नही था,पहले न ऐसी रातें हुई थीं
यूं ही बस खुल गया था मैं तुमसे ,शायद कमी मेरे तरीके में कहीं थी
लेकिन सच कहूं तो कोई तरीका न चुना था,शायद यहीं मुझसे गलती हुई थी
यूं तो अकेला ही रहता था खुद में ,तुम जो मिले तो उम्मीदें हुई थीं
उम्मीदें भी ऐसीं कि खुदको न रोका,न सोचा क्या गलत क्या बातें सही थीं
अरसे बाद घुला था किसी के रंग में,किसी से इस दिल की बातें कही थीं
मगर बेरंग हूं मैं भूल गया था,किसी की कही वो बातें सही थीं
अब चुप रहूं तो वज़ह न पूछना,शायद बेवज़ह ही बातें हुई थीं....