...

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पलाश के फूल
बसंती हवा चल पड़ी, धरती को सुर्ख कर गए
ये पलाश के फूल
सिसकियां मंद हो गई, प्रकृति को विहिंसा गये
ये पलाश के फूल
जिन राहों से हम मिलने आते थे
जिन राहों से हम मिल कर जाते थे
उन राहों के दोनों ओर बिखरे हुए हैं
ये पलाश के फूल
प्रथम मिलन की याद दिला गए
नस नस में प्रथम छुअन की सिहरन भर गये
ये पलाश के फूल
अनब्याहे अरमान ब्याह गये
सपने सब सिंदूरी कर गए
ये पलाश के फूल

© सरिता अग्रवाल