मर रहा है..
इक हमारा इक तुम्हारा हमसे जुड़ा हर वो एहसास मर रहा है ।
कल तक था जो ज़िन्दा मकां मे अपने वो भी तन्हा मर रहा है ।।
चैन से जलते देखा था हमने शमशानों मे मरकर ज़िस्मों को यहाँ ।
क्या दौर है ये दुनियाँ का, जो ज़िन्दा इंसान ज़िन्दा ही मर रहा है ।।
इक शज़र था लगा आँगन में मेरे जिस पर झूला था बचपन मेरा...
कल तक था जो ज़िन्दा मकां मे अपने वो भी तन्हा मर रहा है ।।
चैन से जलते देखा था हमने शमशानों मे मरकर ज़िस्मों को यहाँ ।
क्या दौर है ये दुनियाँ का, जो ज़िन्दा इंसान ज़िन्दा ही मर रहा है ।।
इक शज़र था लगा आँगन में मेरे जिस पर झूला था बचपन मेरा...