...

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ज़िंदगी इक सराब
वही रात है वही ख़्वाब है वही चांद है वही चांदनी
वही मौसमों की बहार है पर नहीं रही है वो दीदनी

वही शाम है वही है सहर वही वक्त है जो ठहर गया
न तो इश्क़ में वो ख़ुमार अब न ही हुस्न अब्र-ए-बहमनी

वही हाल है वही चाल है कोई फ़र्क अब भी पड़ा नहीं
हमें दोस्ती का गुमान था पर मिली बदल में है दुश्मनी

कभी ख़्वाब में भी दिखे अगर तो लगे महज़ इक सराब वो
रहा ज़िंदगी का अजाब वो न कहीं दिखाई दी रोशनी

जिसे मानता रहा मैं ख़ुदा किया एतबार वकार पर
था समझ रहा जिसे रहबरी थी असल में वो तेरी रहजनी

जिसे मानता था जवाब मैं मिरे हर किस्म के सवाल का
न तो हल किया कोई मसअला मुझे दे गया वो तो जांकनी

करूं शुक्रिया तेरा ऐ ख़ुदा कोई ज़ख़्म दिल को मिला नहीं
जो बुरा था वक्त नसीब में वो गुज़र गया बिना सनसनी।

बहर: ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२

*दीदनी = देखने के काबिल,
*अब्र-ए-बहमनी = पवित्र बादल,
*सराब = मृगतृष्णा, *अजाब= पीड़ा,
*रहजनी = लूटना, *जांकनी = मौत की पीड़ा
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"