...

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समझता हूं।
उसे पता नही पर उसे मैं समझता हूं।

उसकी वो झूठी हसी ,
वो सच्ची मुस्कान,
वो दबी आंखों की शर्म ,
वो बेशर्म बेखौफ रवैया,
मैं समझता हूं।

उसका वो उबलता गुस्सा,
उस गुस्से के पीछे का दर्द ,
वो आत्मविश्वास से भरी आंखे,
वो छुप छुप कर रोती आंखे,
मैं समझता हूं।

दुनिया की चालाकियों को समझ कर
मन ही मन उसका मुस्कुराना,
"मैं किसी पर विश्वास नही करती" कह कर
हर किसी पर विश्वास करने की अपनी ही आदत से चिड़,
उसकी सहनशक्ति के बड़पन में उसके भोलेपन का बचपन,
मैं समझता हूं।

उसे पता नही शायद पर उसे मैं समझता हूं।

© The heart bones