पति की प्रेमिका को पत्र
सोचती हूँ क्या कह कर बुलाऊँ तुम्हें,
अपशब्द तो बोहोत कह लिया,
क्या अब अपना समझ ही समझाऊं तुम्हें।
मुझे रिक्त कर न जाने क्यों वह तुम्हारा हृदय भरता रहा।
कमी हुई प्रेम में मेरे कहीं, जो तुमसे उसे था मिलता रहा।
या गृहस्थी के झमेलों से ऊब वह यह करता रहा?
तुमने ही तोड़ा था घर मेरा या मैंने खुद ही तोड़ दिया,
मैं तो डूबी ऐसी घर बच्चों में कि पति से ही था मुंह मोड़ लिया।
बची रिक्तता हृदय में उसके, वह भरने तुम तक आया था।
भटका सा मन उसका ऐसा , तुमसे ही मिल पाया था।
मुझे मिला था जो मेरा था ,तुम्हें मिला जो प्रेम रहा शेष था।
हमारे सम्बन्धों में बची उसकी इक्छाओं का भेंट था।
खूब सहा होगा तुमने भी मुझसा न बनने की चेष्टा में,
मैंने भी...
अपशब्द तो बोहोत कह लिया,
क्या अब अपना समझ ही समझाऊं तुम्हें।
मुझे रिक्त कर न जाने क्यों वह तुम्हारा हृदय भरता रहा।
कमी हुई प्रेम में मेरे कहीं, जो तुमसे उसे था मिलता रहा।
या गृहस्थी के झमेलों से ऊब वह यह करता रहा?
तुमने ही तोड़ा था घर मेरा या मैंने खुद ही तोड़ दिया,
मैं तो डूबी ऐसी घर बच्चों में कि पति से ही था मुंह मोड़ लिया।
बची रिक्तता हृदय में उसके, वह भरने तुम तक आया था।
भटका सा मन उसका ऐसा , तुमसे ही मिल पाया था।
मुझे मिला था जो मेरा था ,तुम्हें मिला जो प्रेम रहा शेष था।
हमारे सम्बन्धों में बची उसकी इक्छाओं का भेंट था।
खूब सहा होगा तुमने भी मुझसा न बनने की चेष्टा में,
मैंने भी...